युवा कविता 2 – फटे जूते

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‘विश्व कविता दिवस’ के अवसर पर कैंपस क्रॉनिकल को बड़ी संख्या में कवितायेँ प्राप्त हुईं. कैंपस क्रॉनिकल की संपादकीय टीम ने ‘युवा कविता श्रृंखला’ के अंतर्गत उनमें से अधिकतर को हमारे मंच पर स्थान देने का प्रयास किया है. हम आशा करते हैं कि सुधि पाठक युवा कवि/कवियित्रियों का उत्साहवर्धन करेंगे और उन्हें नई बेहतरीन रचनाओं हेतु प्रेरित करेंगे. प्रस्तुत है –

उसके फटे जूते देख कर समझ गई,
कि उसकी मुस्कान फीकी क्यूं है,
कि उसके पापा ने कितनी मेहनत की होगी,
ताकि उनका बेटा एक जूता ले पाये।

उसका चेहरा देख कर समझ गई,
कि रात को सोते हुए AC तो नहीं चलाता होगा,
तभी वो मेट्रो में बैठा बहुत खिल-खिला रहा था।

उसकी आंखें देख कर समझ गई,
कि उसे पूरी दुनिया घूमनी है,
कुछ शरारत से ही वो सबको खुश कर देता है।

वो एक गरीब नहीं पर एक प्यारा सा बेटा हैं।

– तनीषा खुराना 

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