पिछले कई सौ वर्षों में झांक कर देखने पर हमें कई राष्ट्र बनते एवं बिगड़ते देखे हैं , कई राष्ट्र तो भाषा के आधार पर टूट कर अपना अस्तित्व ही खो बैठे , कई राष्ट्र अपना पुराना नाम तो अभी भी लिए हुए है लेकिन अपनी राष्ट्रीय विरासत यानी की अपनी संस्कृति को बैठे है । परंतु भारत ऐसा राष्ट्र है जिसकी संस्कृति और भौगोलिक एकता की समझ हजारों वर्षों से जीवित है ।एक राष्ट्र के लिए उसकी संस्कृति ही उस राष्ट्र की आत्मा का कार्य करती है और उसकी भौगोलिक सीमाएं उसके शरीर के रूप में रहती है । एक स्वस्थ राष्ट्र के लिए ये दोनो ही आवश्यक है , परंतु शरीर का अंग काट जाए तो पीड़ा अवश्य होती परंतु यदि आत्मा ही निकल जाए प्राण भी क्षीण हो जाते है और वह राष्ट्र एक मृत देह है , जिसका अपना कोई इतिहास नहीं है । उस राष्ट्र के लोग जो अपनी संस्कृति को खो बैठे है , ऐतिहासिक एकता की समझ के अभाव में अपने मन में एक सच्ची राष्ट्रभक्ति तथा भाईचारे का भाव खो बैठने में समय नहीं लगता । इन लोगों की दूसरे राष्ट्र द्वारा भटकाया जा सकता है । परंतु भारत एक ऐसा राष्ट्र है जिसकी संस्कृति जीवित है । और वही संस्कृति इस राष्ट्र के भौगोलिक क्षेत्र को पवित्र मानती है और हमें इसकी सीमाओं की रक्षा के लिए प्रेरित करती है । हमारे राष्ट्र में पहाड़ों को गिरीराज , नदियों को मां के समान पूजा जाता है । धरती को भारत माता के रूप में पूजा जाता है , इस धरती का एक इंच भी कोई भारतीय देने के लिए क्यों तैयार होगा ? यहां हर क्षेत्र एक तीर्थ के रूप में खड़ा है । हमें धरती की पवित्रता की यह सीख हमारे ग्रंथों में विद्यमान महापुरुषों द्वारा ही दी गई है । रामायण में जब रावण से युद्ध जीतने के बाद लक्ष्मण उस स्वर्णमयी लंका को देखकर मोहित हो जाते है तब मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम उनसे कहते है कि –
अपि स्वर्णमयी लंका न मे लक्ष्मण रोचते।जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी
अर्थात – हे लक्ष्मण! सोने की लंका में भी मुझे नहीं रुचती। मुझे तो माता और मातृभूमि स्वर्ग से भी अधिक प्रिय है।यहां यह सीख हमें दी गई है म्लेच्छ भूमि कितनी भी सुंदर एवं मनमोहक क्यों न हो , परंतु अपनी मातृभूमि ही स्वर्ग के समान होती है और हमें हमेशा इसकी रक्षा करनी चाहिए । इस राष्ट्र की संस्कृति वेदों , उपनिषदों , पुराणों , इतिहास ग्रंथों , बुद्ध त्रिपिटक , जैन ग्रंथ आदि में धारण की हुई है । और यह सभी ग्रंथ हमें एकता का ही संदेश देते है । संगच्छध्वं संवदध्वं सं वो मनांसि जानताम्।अर्थात् हम सब एक साथ चलें; एक साथ बोलें; हमारे मन एक हों।ऐसा हमें वेद उपदेश करते हैं । यह हमारी एकता की भावना से भरी संस्कृति ही है जिसकी वजह से आज हमारा राष्ट्र गर्व से खुद को विश्व की प्राचीनतम सभ्यता कह सकता है । हमारी भौगोलिक समझ हमारी सांस्कृतिक समझ से कभी कम नहीं रही है क्योंकि शरीर (सीमा) पर निरंतर आघात किए जाएंगे तो उस राष्ट्र के प्राण (संस्कृति) एक न एक दिन क्षीण हो ही जाएंगे । इसलिए इस धरती को एक सूत्र में बांधा गया है । हमारे पुराणों में इसकी समझ साफ दिखाई देती है ।उत्तरम् यत् समुद्रस्य हिमाद्रे: चैव दक्षिणम्। वर्षम् तद् भारतम् नाम भारती यत्र संतति: (विष्णु पुराण २.,३.१)।समुद्र के उत्तर में और हिमालय के दक्षिण में जो देश है उसे भारत कहते हैं तथा उसकी संतानों (नागरिकों) को भारती कहते हैं।भारत ने कभी विदेशी भूमि पर कब्ज़ा कर उनके लोगों पर अत्याचार या धर्म के आधार पर उत्पीड़न करने की नीयत नहीं रखी , परंतु अपनी सीमाओं की रक्षा करने में कभी झिझक नहीं दिखाई । कभी यदि हमारी धरती म्लेच्छों के अधीन भी हुई तो अनेकों शूरवीर पैदा हुए जिन्होंने इस धरती को स्वतंत्र करने के लिए अपनी प्राणों तक की आहुति दी । ये भारत के वीर पुत्र कभी चंद्रगुप्त तो कभी समुद्रगुप्त , स्कंदगुप्त हो या महाराणा प्रताप , छत्रपति शिवाजी महाराज हो या सुभाष चंद्र बोस किसी न किसी रूप में इस धरती की गरिमा को बनाए रखने के लिए प्राण तक दांव पर लगाए और इस धरती को स्वतंत्र करवाने में अहम भूमिका दी। आज भी हमारे वीर जवान सीयाचीन के बर्फीली ठंडी हवाओं में जहां शरीर भी जम जाता है वहां से लेकर जैसलमेर की तपती गर्मी में हमारे देश की सीमाओं की रक्षा करते है । नमन है ऐसे वीरों की ये प्रत्येक जवान अपने हृदय रूपी मंदिर के अंदर एक महाराणा , एक चंद्रगुप्त को धारण किए हुए है । सीमाओं की रक्षा के साथ साथ हमारे राष्ट्र की आत्मा यानी की संस्कृति को भी संरक्षित करने तथा स्वच्छ रखने के लिए भी अनेकों महापुरुष समय समय पर आगे आए । प्राचीन काल के व्यास , गौतम आदि ऋषि से लेकर शंकराचार्य जिन्होंने भारत के चार भागों में चार मठों की स्थापना की । तुलसीदास जैसे कवि जिन्होंने रामायण को पुनः मुख्यधारा में लाया । महात्मा बुद्ध और ओशो रजनीश जैसे महान व्यक्ति जिन्होंने तर्क का महत्व बतलाया । महर्षि दयानंद सरस्वती जी ने वेदों की और लौटने का उपदेश दिया । इस प्रकार ये संस्कृति हमेशा जीवित रही । हमारी संस्कृति ही हमें एक गौरवान्वित भारतीय होने का अवसर देती है । हमारी यही भावना को इस धरती को पवित्र मानती है और संस्कारों और ग्रंथो को अब भी उचित सम्मान देती है , इसी कारण आज हमारा राष्ट्र जीवित है । यह केवल एक भूमि का टुकड़ा न होकर एक महान सभ्यता है । इस राष्ट्र की गरिमा इसी प्रकार बढ़ती रहे ।