“एक बार फिर”

Academics Campus Philosophy

–Written By विनीत श्रीवास्तव


जब मेरी दुनिया ख़तम होती है
और मैं भटकता हूँ
उन वादियों में,
उन जगहों पर जो यथार्थ से परे हैं,
जो अवचेतन की उपज जैसी है
बारिश की टपकती बूंदों में
चमकते सूरज
और शांत चाँद के
रंग से रंगी उस वादी में
जहाँ एक अजीब सा इन्द्रधनुष है
जिसमे न जाने कितने तरह के रंग हैं
जो कि उन पुरानी यादों में
अपनी परछाइयां छोड़ रही हैं
जहाँ मैंने तुम्हारा हाथ पकड़ा हुआ है
और मैं उस पल में विलीन
होता जा रहा हूँ
एक ऐसी चीज में जो
हमारी तुम्हारी दुनिया के परे है
जहाँ मैं और तुम कुछ नहीं हैं
सिवाय एक एहसास के
उस एहसास के एहसास में
जो कि तुम्हरी चाहत
और मेरे प्यार से बुरी तरह
भींगा हुआ है
उस एहसास में जहाँ मैं तुम में खोता-
सा जा रहा हूँ
उस क्षण के एहसास का एहसास
जब हमारी हस्ती, पहचान, हमारे
भाव
गुम हो जाते हैं
उस क्षण के लिए
जो हमें साथ लेता है अपने
और फेंक देता है
चमकते सूरज
और शांत चाँद
के रंग से रंगी उस वादी में
जहाँ एक अजीब सा इन्द्रधनुष है
जिसमे न जाने कितने तरह के रंग हैं
मुझे वहीं ले चलो प्रिय
मैं खुद को खो देना चाहता हूँ
एक बार फिर!

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