साक्षी राज
भारत में 22 आधिकारिक भाषाएँ और 1600 से अधिक बोलियाँ बोली जाती हैं। ऐसी विविधता वाले देश को एक सूत्र में पिरोने का कार्य हिंदी (Hindi Diwas) निभाती है। विशाल भौगोलिक, सांस्कृतिक परिदृश्य में, जहाँ नागरिक अलग-अलग पृष्ठभूमियों से आते हैं, हिंदी संपर्क-सूत्र के रूप में न केवल संवाद का माध्यम बनती है, बल्कि भावनाओं, विचारों और संस्कृतियों को जोड़ने वाली कड़ी भी सिद्ध होती है। इसकी सरलता और सहजता ही इसे अधिक सर्वग्राह्य बनाती है।
केंद्रीय विश्वविद्यालयों, जैसे दिल्ली विश्वविद्यालय, में देश के कोने-कोने से आए छात्र भाषा, संस्कृति और विचारों में भिन्न होते हैं, फिर भी उनके बीच संवाद स्थापित करने में हिंदी (Hindi Diwas) स्वाभाविक सेतु बनती है। हिंदी के महत्व का अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि यह विश्व की सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं में अग्रणी है, और भारत में लगभग 46 प्रतिशत लोग इसे अपनी मातृभाषा मानते हैं। भारत के बाहर भी नेपाल, मॉरीशस, अमेरिका, ब्रिटेन जैसे देशों में हिंदी भाषी समुदाय बड़ी संख्या में मौजूद है।
हिंदी का गौरवशाली विकास क्रम संस्कृत, पाली, प्राकृत और अपभ्रंश से होता हुआ खड़ी बोली और हिंदुस्तानी के पड़ावों से गुजरकर आधुनिक देवनागरी तक पहुँचा है। भक्तिकाल में कबीर, सूरदास, तुलसीदास ने इसे जन-मन की भाषा बनाया, तो आधुनिक काल में प्रेमचंद और अन्य रचनाकारों ने इसे साहित्य में प्रतिष्ठित स्वर दिया।
स्वाधीनता आंदोलन के समय हिंदी जनांदोलन की भाषा बनी। बाल गंगाधर तिलक, सुभाषचंद्र बोस जैसे नेताओं ने इसे जनता के साथ संवाद का शक्तिशाली माध्यम बनाया। हिंदी सबको जोड़ती है, क्योंकि उत्तर प्रदेश से लेकर गुजरात तक, किसी भी राज्य का नागरिक पारस्परिक संपर्क में प्रायः इसी भाषा का सहारा लेता है। प्रश्न उठता है, आखिर हिंदी ही क्यों? कारण स्पष्ट हैं: इसकी सरल संरचना, अनेक भारतीय भाषाओं से ध्वन्यात्मक, शब्दार्थिक समानता, और हमारी संस्कृति, परंपराओं से इसका गहरा रिश्ता। साहित्य, सिनेमा, व्यापार, हर क्षेत्र में हिंदी का प्रभाव दिखता है, यही हिंदी की ताकत है कि हमारा फिल्म उद्योग वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बना है।
नई शिक्षा नीति 2020 ने मातृभाषाओं, विशेषकर हिंदी, में प्राथमिक शिक्षा पर बल दिया है। इससे विद्यार्थी अपनी जड़ों से जुड़े रहेंगे और ज्ञानार्जन सरल होगा। चुनौतियाँ भी हैं, अंग्रेजी के प्रबल प्रभाव के कारण कुछ लोग हिंदी (Hindi Diwas) बोलने में संकोच करते हैं और अनावश्यक रूप से अंग्रेज़ी शब्दों का सहारा लेते हैं। फिर भी, भारत की आत्मा गाँवों में बसती है, जहाँ आज भी हिंदी प्रमुख संपर्क भाषा है।
अंततः, हिंदी (Hindi Diwas) केवल एक भाषा नहीं, बल्कि भारत की आत्मा, उसकी विविधता और एकता का प्रतीक है, वह संगीत जिसकी धुन हर दिल की धड़कन में सुनाई देती है। वैश्वीकरण की लहरों के बीच भाषाई पहचान के संरक्षण हेतु हिंदी को सशक्त बनाना केवल भाषाई दायित्व नहीं, सांस्कृतिक उत्तरदायित्व भी है। हिंदी को अपनाना, उसका सम्मान करना और उसे आगे बढ़ाना, यही हमारी साझा विरासत को जीवंत रखने का सुनिश्चित मार्ग है।