छठ : प्रकृति एवं संस्कृति का संगम

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श्रुति सिंह

महापर्व छठ परिचय व नामकरण
■ परिचय- छठ पर्व भारत के प्रमुख, प्राचीन एवं पवित्र पर्वों में से एक है। यह कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष के षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। इस पर्व में सूर्य देव और उनकी बहन उषा देवी (छठी मैया) की उपासना की जाती है, जिससे स्वास्थ्य, समृद्धि और संतान की दीर्घायु की कामना की जाती है। पहले यह पर्व मुख्य रूप से बिहार और झारखंड में मनाया जाता था, लेकिन आज यह पूरे भारत में और विदेशों में भी आस्था और श्रद्धा का केंद्र बन चुका है।
■ नामकरण- छठ शब्द का उद्गम संस्कृत के शब्द षष्ठी से हुआ है, जिसका अर्थ होता है ‘छठा दिन’। यह पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है, इसलिए इसका नाम छठ पड़ा। इसकी कई मान्यताएं हैं:
• पौराणिक मान्यता के अनुसार, इस दिन स्वास्थ्य व संतान की संरक्षिका सूर्य देव की बहन छठी मैया की आराधना की जाती है ।
• इसे सूर्य के छठे किरण से भी जोड़ा गया है, जो पृथ्वी पर ‘जीवनदायिनी ऊर्जा’ लेकर आती है।
भले ही मान्यताएं कई सारी हो, और नाम कई सारे हो, लेकिन श्रद्धालु सच्चे हृदय से ईश्वर को जो नाम दे दें, वह उनसे प्रसन्न ही रहते हैं। तो इस प्रकार होता है हमारे महापर्व छठ का नामकरण। यह दर्शाता है कि छठ पर्व की महत्ता और पवित्रता श्रद्धालुओं के हृदय में बसी आस्था और भक्ति में है।


छठ पर्व का ऐतिहासिक महत्व
छठ पर्व एकमात्र ऐसा पर्व है जो वैदिक काल से मनाया जाता है, और इसका उल्लेख ऋग्वेद और महाभारत जैसे प्राचीन ग्रंथों में मिलता है। ऋग्वेद में सूर्य नमस्कार और उषा स्तुति के जरिए पूजा का उल्लेख है, और छठ पर्व इन्हीं मंत्रों का विस्तार है। इसकी मान्यताएं हैं:
• महाभारत कालीन संदर्भ- महाभारत में कुंती द्वारा सूर्य की आराधना कर संतान प्राप्ति और उनके संरक्षण का उल्लेख मिलता है। कुंती पुत्र कर्ण को सूर्यपुत्र कहा जाता है, जो इस कथा का हिस्सा है और छठ पर्व ऐतिहासिक महत्व को दर्शाता है।
• रामायण कालीन उल्लेख- कुछ मान्यताओं में यह भी कहा गया है कि 14 वर्ष के घोर वनवास के बाद जब श्री राम और माता सीता अयोध्या लौटे, तो उन्होंने शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को सूर्य देव की उपासना और मां गंगा की पूजा की। तब से यह पर्व छठ के रूप में स्थापित हुआ और आज भी दिवाली खत्म होने के छठे दिन लोग घाट पर खड़े होकर सूर्य देव को अर्घ्य देते हैं।


छठ के चार दिन उनके अनुष्ठान
महापर्व छठ चार दिन का त्यौहार है, जो नहाए खाए से लेकर उषा अर्घ्य तक चलता है। यह हृदय को तार– तार कर देने वाला पर्व है। छठ के चार दिन और उनके अनुष्ठान निम्नलिखित है:
• नहाए खाए- यह छठ पर्व का पहला अनुष्ठान है। इस दिन एक समय भोजन करती हैं जिसे नहाए खाए कहा जाता है। इसमें व्रती प्रातः काल उठकर स्वच्छ जलाशय में स्नान करते हैं और सिधे पल्ले की साड़ी पहनते हैं। इसके बाद वे सूर्य देवता और छठी मैया की उपासना करते हैं और घर को साफ– सुथरा कर बिना लहसुन प्याज, सेंधे नमक से सात्विक भोजन बनाते हैं। इस भोजन में लौकी की सब्जी, चना दाल, भात और आलू की पकौड़ी शामिल होती है, जिसे व्रती सर्वप्रथम ग्रहण करते हैं और फिर अन्य लोग इसे प्रसाद के रूप में खाते हैं। व्रती के जूठन में खाने को परंपरा में “परम सौभाग्य” माना जाता है।
• खरना- यह छठ पर्व का दूसरा दिन है। इस दिन वर्ती पूरे दिन निराहार रहते हैं। सूर्यास्त के बाद वे शुद्ध जल से स्नान कर छठी मैया को गुड़ की खीर और रोटी का प्रसाद केले के पत्तों में परोसते हैं। इसे छठ मैया को ‘न्योता’ या ‘निमंत्रण’ देना कहा जाता है। इसके बाद व्रती इसे ग्रहण करते हैं और फिर घर के सभी लोग इसे प्रसाद के रूप में खाते हैं।
• संध्या अर्घ्य- यह छठ का मुख्य दिन होता है। इस दिन वर्ती सुबह से व्रत रखते हैं और धोती की सीधे पल्ले की साड़ी पहनते हैं। वे ठेकुआ बनातीं हैं और घाट पर जाने के लिए सूप और दौरे को फल-फूल से सजातीं हैं। शाम को सूर्यास्त के समय लोग अपने सर पर दौरा लिए घाट पर पहुंचते हैं और सूर्य देव को अर्घ्य देते हैं। इस दौरान “कांच ही बांस की बहंगिया” और “केलवा के पात पर नेवताता पेठवनी” जैसे भोजन गूंजते हैं, जो एक अत्यंत भक्तिमय होता है।
• उषा अर्घ्य- इस दिन वर्ती ब्रह्ममुहूर्त में घाट पर पहुंचकर सूर्य देव की प्रतीक्षा करते हैं। इस दिन उदयमान सूर्य देव को दूध, जल और प्रसाद अर्पित किया जाता है। तत्पश्चात हवन कर वर्ती अपनी छठी मैया के लिए भावविभोर हो घाट पर लोगों को ठेकुआ और प्रसाद बांटते हैं। इसके उपरांत सभी साथ पारण करते हैं, जो एक बहुत ही भावनात्मक और हृदयस्पर्शी दृश्य होता है।


व्रत की कठिनाइयाँ एवं श्रद्धा
छठ पर्व को व्रतों में सबसे कठिन, सबसे स्वच्छ व सबसे अनुशासित व्रत माना जाता है, जिसमें परिवार के सदस्यों को भी सख्त नियमों का पालन करना पड़ता है। दिवाली के बाद से ही इस व्रत और इसके नियमों की शुरुआत हो जाती है।
क) नहाए खाए के एक दिन पहले गेहूं धोने की रस्म होती है, जिसमें गेहूं को स्वच्छ जल से धोया जाता है तथा छत पर सुखाया जाता है। इस दौरान चिड़ियों पर नजर रखी जाती है और जब तक गेहूं सूख नहीं जाते तब तक अन्न और जल ग्रहण नहीं किया जाता।
ख) गेहूं-चावल को साफ धोकर सुखाया जाता तथा इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है कि किसी के पैर से न लगे, न ही किसी चिड़िया द्वारा उस अनाज का एक कण भी ग्रहण किया जाए।
ग) नहाए खाए के दिन घर को पूर्णतः साफ पानी से धोकर मिट्टी के चूल्हे पर सात्विक भोजन पकाया जाता है और वर्ती केवल एक समय भोजन करते हैं।
घ) खरना के दिन वर्ती पूरे दिन निर्जला उपवास रखते हैं और शाम को गुड़ की खीर और रोटी को प्रसाद के तौर पर ग्रहण करते हैं।
ङ) तीसरे और चौथे दिन वर्ती निराहार होकर सूर्य देव की उपासना करते हैं। परिवार के सदस्यों और अन्य लोगों को भी इस बात का ध्यान रखना होता है की उनके पैरों तले एक छोटा सा कंकण भी न आए, क्योंकि व्रती देवी रूप में पूजी जातीं हैं।
च) छठ पर्व के दौरान पूरे घर, पूजा सामग्री, बरतन और अन्य चीजों की सफाई का ध्यान रखा जाता है।
छ) छठ से जुड़े हर अपवित्र शब्दों के प्रयोग से बचना पड़ता है, और यही एकमात्र ऐसा पर्व जिसमें गलती पर 4 साल के बच्चे को भी प्यार से मारा जाता है।
ज) छठ पर्व में श्रद्धालु अपने व्रत में बिल्कुल ढिलाई नहीं करते, चाहे मौसम कितना भी ठंडा क्यों न हो या शरीर कितना भी थका हो। जो स्त्री एक डिब्बे को नहीं उठा सकती, वह घाट पर भारी सूप उठाकर सूर्य देव को अर्घ्य देतीं नजर आतीं हैं।


प्राकृतिक व पारिस्थितिक संदेश
महापर्व छठ को पूर्णतः प्राकृतिक त्यौहार या “महाप्रकृति पर्व” कहना बिल्कुल सही है, क्योंकि इसमें ऐसे अनुष्ठान शामिल हैं जिससे प्रकृति को फायदा होता है। जल सफाई और संरक्षण से लेकर पर्यावरण शुद्धता तक, छठ पर्व शुद्धता के साथ सामंजस्य और संतुलन का प्रतीक है।
• प्राकृतिक चक्र सूर्योदय व सूर्यास्त– छठ पर्व में सूर्य देव को सुबह शाम अर्घ्य देने से हमें प्रकृति चक्र का सम्मान करने और प्राकृतिक ऊर्जा का संतुलित उपयोग करने का संदेश मिलता है।
• शुद्धता के साथ पर्यावरण संरक्षण- इस पर्व में शुद्धता के साथ पर्यावरण संरक्षण पर भी ज़ोर दिया जाता है, जिसमें घर की सफाई के साथ– साथ घाटों और नदियों के किनारों की भी सफाई की जाती है। वर्ती के चले हुए रास्तों पर अपशिष्ट फेंकने पर सख्त रोक लगाई जाती है। लोग जल की महत्ता को समझते हैं और इसे स्वच्छ रखने का संकल्प लेते हैं। पर्यावरण की देखभाल सामूहिक रूप से की जाती है, जो पर्यावरण संरक्षण का एक सशक्त उदाहरण है।
• धरती की मौसमी उपज व स्थानीय प्राकृतिक उत्पाद- छठ पर्व के प्रसाद के रूप में उपयोग की जाने वाली सामग्री पूरी तरह प्राकृतिक व शुद्ध होती है, जा स्थानीय और मौसमी उत्पादन का समर्थन करती है। यह प्रकृति के प्रति हमारी कृतज्ञता को दर्शाता है और हमें प्रकृति की दी हुई उपज का सम्मान करने और उसको श्रद्धा से ग्रहण करने का संदेश देता है।
• प्राकृतिक सौंदर्य के साथ मानसिक स्वास्थ्य- छठ पूजा लोग खुले मैदान में नदी के किनारे करते हैं, जिससे मनुष्य और प्रकृति के बीच ‘आत्मा से परमात्मा का मिलन’ जैसा संबंध स्थापित किया जाता है।


संस्कृति से भावनात्मक जुड़ाव
छठ पर्व का सांस्कृतिक जुड़ाव इसका महत्वपूर्ण पहलू है, जो व्यक्ति को न केवल धार्मिक, शारीरिक और प्राकृतिक रूप से जोड़ता है, बल्कि सामाजिक और संस्कृतिक रूप से भी जोड़ता है। यह पर्व हमें अपनी संस्कृति का सम्मान करने का एहसास दिलाता है, जो हमारी मातृभूमि और मातृत्व के समान है।
• लोकगीत व संगीत- छठ पर्व में लोकगीत और संगीत एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है, जिसमें सूर्य देव और छठ माता के साथ प्राकृतिक तत्वों का वर्णन होता है। इन गीतों में भाषा की मधुरता, सरलता, भावनाओं की गहराई झलकती है, जो भारतीय संस्कृति की विशिष्ट पहचान है। लोकगीत परंपरा को पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ाने का काम करते हैं।
• कला व सजावट- घाट व नदी के तट को रंग-बिरंगे फूलों, केले के पत्तों और लड़ियों से सजाया जाता है। यह स्थानीय कला और शिल्प कौशल को प्रदर्शित करने का बढ़िया माध्यम है।


प्रकृति व संस्कृति का संगम
महापर्व छठ कि सबसे बड़ी विशेषता प्रकृति और संस्कृति का अद्भुत संगम है, जहाँ हर प्राकृतिक वस्तु का सम्मान सांस्कृतिक मान्यताओं और अनुशासन के साथ किया जाता है।
• सूर्य और जल प्राकृतिक व सांस्कृतिक प्रतीक–
क) प्राकृतिक- पौधों से लेकर मनुष्य, सूर्य सभी जीवों के लिए ऊर्जा का प्रमुख स्तोत्र है, और इसकी उपासना न केवल धार्मिक है, बल्कि वैज्ञानिक व पर्यावरणीय भी है।
ख) संस्कृतिक- इन शक्तियों की पूजा कर इन्हें ईश्वरीय दर्जा दिया जाता है, जो हमारी संस्कृति की विशिष्ट पहचान है कि हम प्रकृति को पूज्य मानते हैं।
लोक परंपरा में प्रकृति का समावेश-
क) प्राकृतिक- छठ पर्व में नदियों तथा तालाबों के घाटों को स्वच्छ कर उन्हें सजाया जाता है, और मौसमी व धरती से सीधे मिलने वाली वस्तुओं का प्रयोग किया जाता है
ख) संस्कृतिक- हमारी संस्कृति, प्रकृति से उत्पन्न हर वस्तु का सम्मान करती है, और इन्हें पूजन सामग्री बनाकर अपनी परंपराओं का हिस्सा बनती है।
लोकगीतों में प्राकृतिक वर्णन –
क) प्रकृतिक- इसमें सूर्य, जल, पेड़, फल इत्यादि का वर्णन मिलता है। इन गीतों में प्रकृति के संरक्षण की जानकारी भी निहित होती है।
ख) संस्कृतिक- लोकगीत और संगीत प्रकृति को संस्कृति में जीवित रखते हैं, और भक्ति तथा लोक कला के माध्यम से प्रकृति संरक्षण को प्रमुखता देते है।


निष्कर्ष
महापर्व छठ वास्तव में एक अद्भूत पर्व है, जिसमें प्रकृतिक, सांस्कृतिक और सामाजिक पहलू निहित हैं। यह पर्व हर धर्म और जाति के लोगों को साथ लाकर पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए बिना त्यौहार मनाने का एक प्रामाणिक उदाहरण है। यह पर्व हमें सिखाता है की संस्कृति केवल मंदिरों या धार्मिक स्थलों में नहीं, बल्कि लोगों के आपसी संबंधों और सामाजिक सौहार्द में निहित है। यह पर्व धार्मिक भक्ति को व्यक्त करने के साथ– साथ ग्रामीण जीवन, स्त्री संवेदना और लोक संस्कृति की आत्मा को भी जीवंत रखता हैं ।
छठ पर्व वास्तव में मानव संस्कृति और प्रकृति का अद्भुत संगम है, जिसे बूढ़ों से लेकर बच्चे सच्ची श्रद्धा के साथ मनाते हैं। स्वच्छ हृदय, स्वच्छ तन, स्वच्छ मन और स्वच्छ प्रकृति के साथ यह त्यौहार बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है। यह पर्व स्वच्छता, एकता, करुणा और स्त्रीत्व की महानता का संगम है, जो हमारे महापर्व की विशेषता है।

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