: डॉ कमल गोयल
भारत आदि एवं अनंत काल से एक राष्ट्र के रूप में विद्यमान है। भारत ने सदैव विश्व में बंधुत्व का भाव प्रसारित किया है। जिसके लिए समय समय पर अनेक महान विभूतियों ने जन्म लिया और अपने ज्ञान से इसको पोषित भी किया। ऐसे ही एक महापुरुष हुए सिख परम्परा के नौवें गुरु श्री तेग बहादुर जी। यह वर्ष गुरु तेग बहादुर जी की सहादत, बल व पराक्रम की 350वीं पूण्यतिथि का वर्ष है।
गुरु तेग बहादुर जी का जन्म उस समय हुआ जब भारत मुस्लिम आक्रान्ताओं के अत्यचारों से त्रस्त था। पूरे देश में मंदिरों को तोडना, बलपूर्वक धर्मांतरण कराना जैसे विषय अपनी चरम सीमा पर थे। ऐसे में गुरु तेग बहादुर जी ने समाज की चेतना एवं सुप्त हुई होई शक्ति को पुनः जागृत करने का निश्चय किया। उसी समय कश्मीर घाटी का हिंदू समाज पं कृपाराम जी के नेतृत्व में गुरु तेग बहादुर जी के पास गया। गुरु जी ने आगे बढ़कर औरंगज़ेब की क्रूर एवं अन्यायकारी सत्ता को चुनौती दी।
इस्लामिक कट्टरपंथी शासन ने छलपूर्वक गुरु जी को बंदी बना लिया और उन्हें धर्मांतरण करने या मृत्युदंड स्वीकार करने को कहा। गुरु जी की इच्छा शक्ति को तोड़ने के लिए अनेकोनेक मापदंड अपनाये जैसे की भाई दयाला सिंह जी को गरम तेल में उबाल कर मरना व भाई मतिदास को आरे से काट कर मारना। इन सब यातनाओं का गुरु जी के आत्मबल पर असर नहीं हुआ और उन्होंने सिर झुकाने से अच्छा देहुत्सर्ग करने का निश्चय किया। दिल्ली के चांदनी चोंक में गुरु जी की शाहादत हुई। जिसने पुरे हिंदू समाज में एक साहस का वातावरण पैदा हुआ, जिसने मुग़ल साम्राज्य की नीव हिला दी। उनकी शहादत के लिए उनको हिन्द दी चादर के नाम से जाना जाता है। आज के वर्तमान समय में जब शहरी नक्सलवाद, कट्टरपंथ व असहिष्णुता जैसे विषय चुनौती है, ऐसे में गुरु जी की शिक्षाओं की प्रासंगिकता और बढ़ जाती है।

