सोने के पिंजड़े में क़ैद होना या बेशर्त आज़ाद होना! ये दो विकल्प सामने हों तो आप क्या चुनेंगे?

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–Written By चन्दन शुभम


सोने के पिंजड़े में क़ैद होना या बेशर्त आज़ाद होना! ये दो विकल्प सामने हों तो आप क्या चुनेंगे? 

निःसंदेह आज़ादी। मानव जीवन की मूल जरुरत है आजादी। सपने देखने की आज़ादी, उनको पूरा कर सकने की आज़ादी। व्यक्तिगत आज़ादी समाज को आज़ाद करती है, और सामाजिक आज़ादी देश को। 

जब एक देश के तौर पर हमने अंग्रेज़ो से आज़ादी की मांग की और इसके लिए विद्रोह शुरू किये तो उसके पहले सालों लगे उस विद्रोह की जमीन तैयार करने में और आज़ादी की अलख हर भारतीय के दिल तक पोहचाने में।

राजा राममोहन रॉय, सावित्रीबाई फुले ने महिलाओं के मूलभूत अधिकारों की लड़ाई लड़ के तो सुरेन्द्रनाथ बोसे ने सरकारी सेवाओं में भारतीय मूल के लोगों के लिए बराबर हक़ की वकालत कर के। तिलक ने गणपति और शिवाजी महोत्सव से जनचेतना को आवाज़ दी तो विवेकानंद ने गौरवशाली इतिहास से परिचय कराया। ज्योतिबा फुले सरीके नेताओं ने जहां दलितों के उत्थान का बीड़ा उठाया तो सुरेन्द्रनाथ बैनर्जी ने युवाओं को उठना और संगठित होना सिखाया और इसी तरह देश के कोने कोने में हज़ारो लोगों ने जब लाखों लोगों को मानसिक गुलामी से आज़ाद किया तब हम एक साथ उठ के खड़े हो पाए अपने राष्ट्र की आज़ादी के लिए और तब हर भारतीय ने प्रतिज्ञा ली की पूर्ण स्वराज से कम कुछ भी मंजूर नहीं। इस जनचेतना ने जन्म दिया बोस, गाँधी, अम्बेडकर सरीके महान नेताओं को जो ना सिर्फ भारत को आज़ादी के पथ पर ले के गए बल्कि अपने बल और मेधा के ऐसे अद्वितीय उदाहरण पेश किये जो आने वाली कई पीढ़ियों के लिए प्रेरणा और शिक्षा का श्रोत हैं और बनी रहेंगी।

आज जब हम आज़ादी की बहत्तरवीं वर्षगांठ मना रहे हैं तब भारत का शीर्ष नेतृत्व और जनभावना भी इन्ही महानायकों के आदर्शों और मूल्यों को प्रतिबिंबित करता है| जब हम गणतंत्र दिवस पर समाज के हर उस वर्ग के उत्थान और आज़ादी का सपना देखते हैं, जो मिल के इस महान राष्ट्र का निर्माण करते हैं। की दलित दरिद्रता से स्वतंत्र हो, महिलाएं सामाजिक बंधनो के ओट में घरेलू परतंत्रता से स्वतंत्र हो, कमजोर शोषण से स्वतंत्र हो और हर व्यक्ति विशेष हर मायने में स्वतंत्र हो और इस देश का युवा अपनी आकाँक्षाओं और सपनो को पूरा करने करने के लिए स्वतंत्र हो।

इस देश के युवा होने के नाते हमे ना सिर्फ अपनी आज़ादी बल्कि अपनी जिम्मेदारियों का भी स्मरण होना चाहिए क्यूंकि युवाओं की दशा और दिशा ही राष्ट्र का भविष्य निर्धारित करेगी इसलिए बहुत जरूरी है की हम अपनी दिशा का आंकलन करें। मै खासतौर पर अब इसी वर्ष बारहवीं पास किये उन छात्र छात्राओं को सम्बोधित कर रहा हूँ जो हाल ही में स्कूल से निकल कर कॉलेजों में दाखिल हुए हैं। स्कूल से निकलना और कॉलेज की जिंदगी शुरू होना एक तरीके से नयी आज़ादी मिलना ही है। आप में से ज्यादातर पहली बार घर के माहौल से बाहर निकल कर इस दुनिया को अनुभव करेंगे। और ये बदलाव आपके लिए जितनी आज़ादी ले कर आयी है उतने ही नयी जिम्मेदारियां भी। आचरण  से विचार तक सब अपने हिसाब से निर्णय करने का अधिकार अपने आप में एक बड़ी जिम्मेदारी है और व्यक्तिगत आचार विचार ही सम्मिलित हो के राष्ट्र का आधार बनाते हैं।

स्वतंत्रता केवल भाषा और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता तक सीमित नहीं है, या मज़े लेने की स्वतंत्रता मात्र या अभिभावक की निगरानी से स्वतंत्र हो जाना ही नहीं है बल्कि यह बौद्धिक विकास के बारे में भी होना चाहिए। पहल करने की स्वतंत्रता, उन पहल में सफल और असफल होना, उन सफलताओं और असफलताओं से सिख कर नई पहल में उनका उपयोग करने के लिए भी।

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