“मैंने देखा है एक औरत को”

Campus Diaries

महिला दिवस के अवसर निधि यादव लिखती हैं –

उसके सपनों के कत्लों को,
लाशों को छुपाते हुए,
सब से बचाते हुए,
मैंने देखा है एक औरत को!

पूरे घर को सींचते हुए,
दर-दर पर भीगते हुए,
अनचाहे छुए को सहते हुए,
फिर भी जिन्दा रहते हुए,
मैंने देखा है एक औरत को!

अपनी रेखाओं को कोशते हुए,
बची उम्र को काटते हुए,
खुशी को छुप कर देखते हुए,
सांस के घूटों को पीते हुए,
मैंने देखा है एक औरत को!

उसके आँखों से गिरते शोणित को
उसके वक्ष में बसते अम्रत को
उसके गर्भ में पलते दानव को,
मैंने देखा है एक औरत को!!

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.