मैंने जीवन को बदलते देखा है…

Academics Literature Philosophy

–Written By अमीषा दुबे


जीवन मैंने बदलते देखा है,
खुदको मैंने संभलते देखा है। 

खिल – खिलाता वो सूरज,
हर शाम मैंने ढलते देखा है।

लोगों को आते जाते देखा है,
कुछ को साथ निभाते देखा है। 

मुसीबतों में लाचारी देखी है,
हर रोग, हर बीमारी देखी है।

अटूट रिश्ते मायूब देखें हैं,
अजनबियों की दिलदारी देखी हैं।

खुदको बेचारी देखा है,
मगर ज़िंदगी का आभारी देखा है।

हर मोड़ पर खुदको बिखरते देखा है,
मगर गिर गिर के ही तो संभलना सीखा है।

मैंने जीवन को बदलते देखा है….

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